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स्वीडन के साइंटिस्ट ने कहा, भारत में मेडिकल को इंडस्ट्री बनाने से खत्म हो रही मानवता

  • एनआरआई राम उपाध्याय ने कहा, यूरोप में नहीं करता कोई निजी प्रैक्टिस

लखनऊ। डाक्टर पेशा नहीं है। यह सेवा भाव है। जब से यह व्यापार बनने लगा है, तब से भारत में दिक्कतें पैदा होने लगी। इसको यहां रियल कंस्ट्रक्शन जैसा बिजनेस से जोड़ा जाने लगा है। भारत में मेडिकल इंडस्ट्री बनाया जाने लगा है, जो गलत है। इससे मानवता खत्म होती जा रही है। यूरोप में कोई प्राइवेट प्रेक्टिस नहीं कर सकता। इससे डाक्टर अपना पूरा समय मरीजों पर देते हैं। ये बातें स्वीडन के निवासी भारतीय एनआरआई डाक्टर राम उपाध्याय ने कही।

वे स्वीडन के उपसरा नगर में रहते हैं। वे वर्तमान में हार्वर्ड मेडिकल इंस्टीट्यूट हास्टल के न्यूरोलाजी विभाग में साइंटिस्ट हैं। वे किडनी ट्रांसप्लांट पर काम कर रहे हैं। वे ताज होटल में आयोजित एक कार्यक्रम में आये हुए थे। उन्होंने कहा कि भारत में डाक्टरों की बहुत कमी है। इससे डाक्टरों के पास नयापन लाने का समय नहीं है। वह 20 साल पहले जो पढ़ा है, उसी को करता रहता है। वह इलाज को अपडेट नहीं कर सकता, जिससे कोई शोध नहीं कर सकता।

डाक्टर राम उपाध्याय ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से विशेष वार्ता में कहा कि यूरोप में हमेशा डाक्टर अपने समय का 70 प्रतिशत इलाज में लगाता है, लेकिन 30 प्रतिशत समय हमेशा नये शोध के लिए देता है। इससे वह अपग्रेड रहता है। इससे नई चुनौतियों से लड़ने में सक्षम होता है।

डाक्टर राम उपाध्याय ने कहा कि प्राइवेट प्रेक्टिस से डाक्टर मरीज को तन-मन-धन नहीं दे पाता है। इससे वह पेसेंट वैल्यू न समझकर उसका शोषण करने में जुट जाता है। इलाज में न्यूनतम जांच की जगह अधिकतम जांच कराता है। इससे मरीज का शोषण होता है। यह भारत में मेडिकल को इंडस्ट्री बना दिया गया, इसी का परिणाम है।

बच्चों के संबंध में उन्होंने कहा कि भारत में पिता हमेशा अपने विचार को थोपना चाहता है। वह बच्चे के विचार को समझना नहीं चाहता, जबकि विदेश में ऐसा नहीं है। यदि किसी का पिता डाक्टर है और उसका बच्चे का मन प्लंबर के काम में लग रहा है तो वह प्लंबर में ही आगे बढ़ सकता है। विदेश में लोग बच्चे के मन के हिसाब से ही काम कराया जाता है। पिता उसको अपने इज्जत से नहीं जोड़ता। यहां सेट करने की पद्धति विदेशों की अपेक्षा अलग है।

Yuva Media

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