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मुंडका अग्निकांड : अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे लोग

  • चश्मदीद ने बताया, बिल्डिंग में थे ढाई सौ से ज्यादा लोग
  • उप्र और बिहार के अधिकतर कर्मचारी

नई दिल्ली। मुंडका में हुए दर्दनाक हादसे के बाद कई परिवार के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट गया है। घटना के बाद कई लोग अभी भी लापता हैं और परिवार के लोग अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। परिवार के लोग घटना स्थल से लेकर आसपास के अस्पतालों में अपनों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपनों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि बरामद शवों की स्थिति ऐसी है कि उनकी पहचान कर पाना मुश्किल है। ऐसे में परिवार के लोगों को हर तरफ से निराशा ही हाथ लग रही है।

उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के रहने वाले प्रवीण इसी इमारत में काम करते थे। घटना के बाद से प्रवीण का कोई अता-पता नहीं है। वह यहां अपने दो भाईयों पवन और पंकज के अलावा पत्नी और दो जुड़वां बेटियों के साथ रहते थे। परिवार वालों ने बताया इस फैक्टरी में तीन सौ लोग काम करते थे। यहां पर सीसीटीवी कैमरा, वाईफाई का कवर और तार का काम होता था। परिवार वालों ने बताया कि घटना के बाद से उनका कोई अता पता नहीं है।

इसी तरह यहां काम करने वाली रंजू भी घटना के बाद से गायब है। उसका देवर घटना के समय यहां से गुजर रहा था। इमारत के पास भीड़ देखकर रूक गया और अपनी भाभी के बारे में जानकारी हासिल करने लगा, लेकिन न तो घटनास्थल और न ही अस्पताल से ही कोई जानकारी मिल पाई।

नांगलोई की रहने वाली मुस्कान के चाचा इस्लामुद्दीन ने बताया कि घटना की जानकारी मिलते ही वह अपनी बच्ची की तलाश में यहां पहुंचे। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि आग लगने के बाद उसकी भतीजी ने अन्य लड़कियों के साथ इमारत की पिछली दीवार के पास से नीचे छलांग लगा दी। इसका लोगों ने वीडियो भी बनाया, लेकिन अस्पतालों में काफी तलाश करने के बाद भी मुस्कान का पता नहीं चल पाया है।

दो जुड़वा बेटियों के पिता की तलाश

अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रवीण नौ साल से इस कंपनी में काम कर रहे थे। उनका एक बेटा और दो जुड़वां बेटी हैं। आग लगने के बाद उनका कोई अता पता नहीं है। परिवार वालों ने बताया कि अस्पतालों में कोई कुछ बताने को राजी नहीं हो रहा है। बस एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजा जा रहा है। परिजनों ने बताया कि परवीन का फोन भी नहीं मिल रहा है। भगवान करे कि वे जिंदा हों, जिसकी उम्मीद हमको कम ही लग रही है। अगर कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा।

परिवार को पालने के लिए खुद कर रही थी काम

बिहार की रहने वाली रंजू कंपनी में काफी सालों से काम कर रही थी। उसके साथ एक नाबालिग लड़की और यशोदा भी काम कर रही थी। तीनों का कुछ नहीं पता चल पाया। परिजनों ने बताया को तीन अस्पताल के चक्कर काट चुके हैं कुछ नहीं पता चल रहा है।

इमारत की छत पर ही था मालिक का मकान

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इमारत की छत पर ही मालिक भी रहता है। जो आग लगने के बाद बच गया है। वह सुबह से ही अपने घर पर था। आरोप लगा है कि मालिक ने आग लगने के बाद छत का दरवाजा नहीं खोला था, जिससे कर्मचारी बीच में ही फंसे रह गए थे। इसके बारे में पुलिस मालिक से पूछताछ कर रही है। मकान अवैध तरीके से बनाया हुआ था या नहीं पुलिस इस बारे में भी पूछताछ करार ही है।

चश्मदीद ने बताया- बिल्डिंग में थे ढाई सौ से ज्यादा लोग

मौके पर मौजूद चश्मदीद बांगड़ ने बताया कि जैसे ही आग लगने की घटना हुई, तुरंत गांव के लोग वहां पहुंच गए और आग पर काबू पाने की कोशिश करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने पुलिस और फायर डिपार्टमेंट को फोन भी लगाय। ये घटना शाम करीब साढ़े चार बजे घटी। चश्मदीद ने ये भी बताया कि उस समय बिल्डिंग में करीब ढाई सौ से ज्यादा लोग मौजूद थे, जिन्होंने बचने के लिए ऊपरी मंजिल पर भी जाने की कोशिश की थी।

उप्र और बिहार के अधिकतर कर्मचारी

कंपनी में काम करने वाले लोगों ने बताया कि अधिकतर काम करने वाले लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं। गांव में पैसा ज्यादा कमाने के साधन नहीं होने पर दिल्ली आकर बस गए थे। किराये पर मकान लेकर साथियों के साथ रहकर कंपनी में काम कर रहे थे। अच्छी तनख्वाह और अच्छी जिंदगी देखकर गांव के कुछ साथियों को भी बुलाकर कंपनी में काम पर रखवा दिया था, लेकिन क्या पता था कि जिनको उन्होंने बुलाया वह ही कंपनी में आग की चपेट में आने से हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर चले जाएंगे।

खबर पता चलते ही मौके पर पहुंचे परिजन

इमारत में काम करने वाले कुछ परिजनों ने बताया कि आग की खबर उनके इलाके में आग की तरह से फैली थी, जब इस इमारत के बारे में पता चला तो हम अपनों के बारे में जानने के बारे में मौके पर पहुंचे, लेकिन कोई इमारत के आसपास भी नहीं जाने दे रहा था, संपर्क करने के लिए फोन भी कोई नहीं उठा रहा था। काफी देर बाद कुछ कर्मचारियों से संपर्क हुआ। जिन्होंने हालातों के बारे में और उनके अपनों के बारे में जानकारी दी। इसके बाद अपनों से मिलकर बेचैनी खत्म हुई। कुछ लोगो ने बताया कि उनको सोशल मीडिया से खबर के बारे में पता चला था, जिसके बाद वे मौके पर पहुंचे थे, लेकिन वहां उनसे संपर्क नहीं होने पर वे संजय गांधी अस्पताल में जाकर अपनों के बारे पूछताछ की थी।

नीचे आने का था सिर्फ एक गेट

कंपनी में काम करने वालों ने बताया कि कंपनी में मेन गेट सिर्फ एक ही था, लेकिन वहां तक तो कोई आ भी नहीं सका था। उनको पता चला है कि जब आग लगी थी तो बस चिल्लाने और बचने की ही आवाजें आ रही थीं। आग बुझाने का वहां पर कोई उपकरण भी नहीं था। कर्मचारी खुद को बचाने के लिए खिड़की के शीशे तोड़कर नीचे कूदने की कोशिश कर रहे थे।

दम घुटा और वहीं पर बाद में जले

लोगों ने बताया कि कंपनी में जब आग लगी थी, तब हर कोई जान बचाने की बस कोशिश कर रहा था। जिसमें महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा थी। जो आग देखकर काफी घबरा गई थीं। भगदड़ के बीच कुछ वहीं पर गिरी और दन घुटने से बेहोश हो गईं। जो महिलाएं बेहोश हुईं, उनकी आग की चपेट में आने से मौत हो गई।

कुछ प्रमुख घटनाएं

  • 13 जून 1997 उपहार अग्निकांड : दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में फिल्म देखने के दौरान लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी।
  • 12 जुलाई 2019 : करोलबाग गुरुद्वारा रोड स्थित होटल अर्पित पैलेस में आग लगने से 17 लोगों की मौत।
  • 21 जनवरी 2018 : बवाना औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर 5 स्थित एक पटाखा स्टोरेज यूनिट में भीषण आग लगने से 17 की मौत। मारे गए लोगों में नौ महिलाएं और एक नाबालिग लड़की भी शामिल थी।
  • 7 जुलाई 2017 : दिलशाद गार्डन के सीमापुरी में आग लगने से एक ही परिवार के चार लोगों की मौत हो गई थी, जबकि दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
  • 20 नवंबर 2011 : नंदनगरी ई.2 ब्लाक में गगन सिनेमा के पास स्थित एक सामुदायिक भवन में अखिल भारतीय किन्नर समाज सर्वधर्म सम्मेलन के दौरान पांडाल में आग लगने की घटना में कम से कम 14 किन्नरों की मौत हो गई थी। जबकि करीब 40 किन्नर घायल हो गए थे।
Yuva Media

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