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अमरगढ़ का मंचन कर अमर शहीदों को किया नमन

लखनऊ। संस्था भारतोदय की रंगमण्डलीय प्रस्तुति नाटक कथा अमरगढ़ की “अमर शहीदो को नमन, एक शाम गुमनाम शहीदो के नाम” कार्यक्रम का आयोजन संगीत नाटक अकादमी परिसर, गोमतीनगर लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम में 1858 में अमरगढ़ ताल में हुई क्रान्ताकारी घटना पर आधारित नाटक कथा अमरगढ़ की प्रस्तुति पर कलाकारों द्वारा अभिनय किया गया।

नाटक लेखन धर्मेन्द्र कुमार मौर्य व निर्देशन चन्द्रभाष सिंह ने किया। भारतोदय रंगमंडल द्वारा प्रस्तुति कथा अमरगढ़ की कथासार में डुमरियागंज मुख्यालय से पश्चिम में मात्र 1 किलोमीटर दूर राप्ती नदी के तट से दक्षिण तरफ नोखा से सटे एक स्थान पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसी लड़ाई लड़ी की अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे। लेकिन हमारे देश के स्वतंत्रता के दीवानों ने बड़ी संख्या में अपनी जान गवा कर भारत माता को अपनी शहादत अर्पित कर दी।

इस जंग में लगभग 80 भारतीयों को अंग्रेजों द्वारा क्रूरता पूर्वक शहीद कर दिया गया, और अनगिनत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राप्ती नदी में डूब कर वीरगति को प्राप्त की। उसी स्थान को अमरगढ कहा जाता है। नाटक कथा अमरगढ़ की 26 नवम्बर 1858 में हुई इस क्रांतिकारी घटना पर आधारित है। अंग्रेजों का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था, अंग्रेज़ इससे पूर्व भारतीयों का धन दौलत ही लूट रहे थे लेकिन अब वह बहन बेटियों की इज्जत से भी खेलने लगे थे।

अगर अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए कोई खड़ा होता तो उसे देशद्रोही बोल कर उसे फांसी पर चढ़ा देते थे या दिनदहाड़े गोली मार देते थे। चारों तरफ अंग्रेजो का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। नानाराव ने अपने छोटे भाई बाला राव को डुमरियागंज की स्थिति सम्भालने को भेजा। बलाराव, मो० हुसैन व अन्य ग्रमीणों के साथ मिलकर लोगों को अंग्रेजो की  खिलाफत करने के लिए इकट्ठा करने लगे। लोगों को अंग्रेजों के जुल्मों सितम से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार करने लगे।

बलाराव, 26 नवम्बर 1858 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए राप्ती नदी के तट पर एकत्रित होने के लिए आमंत्रित करने लगे। ये सूचना एक अपने ही गद्दार सरीफ़ अली ने जो अंग्रेजो का गुप्तचर था 22 अक्टूबर को जाकर अंग्रेज अधिकारी को बता दी। अंग्रेज अफसर सजग हो गया तथा विद्रोह को दबाने के लिये मुंबई आर्मी के कमांडर आर्थर ग्रेफोर्ड अपने सेना के साथ तथा मद्रास के कर्नल अपने सेना के साथ, फिरोजपुर कर्नल कैंडल अपने 200 घुड़सवारों के साथ तथा गोरखपुर एवं बंगाल से भी सैनिक डुमरियागंज के लिए कूच किए।

26 नवम्बर को अंग्रेजो के साथ आजादी के दीवानों ने खून की होली खेली और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। मंच पर निहारिका कश्यप, जूही कुमारी, साक्षी अवस्थी ने ग्रामीण महिला, प्रणव श्रीवास्तव ने बाला राव, विशाल वर्मा ने मोहन, विशाल श्रीवास्तव ने मो. हुसैन, अग्नि सिंह, रवि विश्कर्मा ने अंग्रेज अफसर, सौरभ शुक्ला ने शरीफ अली, सुन्दरम मिश्र ने हरिया चाचा, आशीष सिंह ने नाना राव, अनुराग शुक्ला ने दरोगा, कोमल प्रजापति ने बसंत, वरुण राव, श्रेयांश यादव, हर्ष गुप्ता, ज्ञान साहू, रंजीत सिंह ने अंग्रेज सिपाही, हरिओम वर्मा, मो. दिलशाद, श्रेया गुप्ता, शिवम मिश्रा, अभिषेक मिश्रा, नीलम श्रीवास्तव ने ग्रामीण, शशांक मिश्रा ने जगाई चाचा का किरदार अदा किया। यह नाटक मंचन उन क्रांतिकारियों को समर्पित है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व लुटा दिया। लेकिन आजादी के बाद न तो उन्हें हमने याद रखा न उन्हें इतिहास में जगह दी।

नाटक 26 नवम्बर 1858 में डुमरियागंज विधानसभा के अमरगढ़ में राप्ती नदी के किनारे अंग्रेजो और भारतीयों के बीच हुए संग्राम पर आधारित है। इस नाटक के माध्यम से इस संग्राम में शहीद हुए भारतीयों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम मंचन में मुख सज्जा सचिन गुप्ता, वस्त्र विन्यास जूही कुमारी, मंच सामग्री निहारिका कश्यप, प्रकाश संचालन सचिन कुमार मिश्रा, मंच निर्माण विशाल श्रीवास्तव, सौरभ शुक्ला, पार्श्व संगीत चन्द्रभाष सिंह, मंच व्यवस्था अनुराग शुक्ला, अर्जुन सिंह, प्रचार प्रसार रविकान्त, मंच संचालन अनुपमा श्रीवास्तव, प्रस्तुतकर्ता गिरीश चन्द्र मिश्र, सहनिर्देशक जूही कुमारी ने किया।

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