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पुतुल उत्सव में कठपुतली का खेल आजादी के संघर्ष को बतायेगा

  • आजादी के अमृत महोत्सव में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर कठपुतली नृत्य आकर्षण
  • आजादी के रंग: पुतुल के संग, 5 शहरों में उत्सव

वाराणसी। विश्व कठपुतली दिवस (21 मार्च) पर सोमवार से संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली व सुबह-ए-बनारस की ओर से तीन दिवसीय पुतुल उत्सव का आयोजन वाराणसी में दो दिन अस्सी घाट पर तो अंतिम दिन दीनदयाल हस्तकला संकुल बड़ालालपुर में किया गया है। खास बात यह है कि इस बार पुतुल उत्सव आजादी के अमृत महोत्सव के रंग में रंगा होगा और यही वजह है कि इसकी थीम भी आजादी के रंग, पुतुल के संग रखी गई है। इस उत्सव में देश की जानी-मानी पुतुल संस्थाएं भी भाग लेंगी। उत्सव में कठपुतली काशी में आजादी पाने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों की कहानी सुनाएगी।

संगीत नाटक अकादमी की सचिव टेमसुनारो जमीर के अनुसार आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरा देश अमृत महोत्सव मना रहा है। इस बार पुतुल उत्सव भी आजादी के अमृत महोत्सव के रंग में रंगा होगा। उन्होंने बताया कि देश में पुतुल कला को बढ़ावा देने के लिए उत्सव के दौरान कुछ शहरों में वर्कशॉप भी आयोजित की जा रही है। कार्यशाला में पुतुल के माध्यम से आजादी के संघर्ष को दर्शाया जाएगा। उत्सव में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, आजाद, प्रकृति की महिमा, सत्याग्रह, रानी लक्ष्मी बाई और महालक्ष्मी कथा जैसे अनेक विषयों पर कठपुतली नृत्य दिखाया जाएगा। यह उत्सव भारत और विश्व के सांस्क़ृतिक और प्राचीन कला को संरक्षित करने की ओर एक सफल कदम साबित होगा।

उल्लेखनीय है कि कठपुतली, लकड़ी या काठ का बना खिलौना जो प्राचीन काल से ही लोगों के मनोरंजन का एक साधन रहा है। माना जाता है कि भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के खेल से ही हुआ है। कठपुतली नृत्य को लोकनाट्य की ही एक शैली माना गया है। यह अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है जिसमें लकड़ी, धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों द्वारा जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति का मंचन किया जाता है।

पॉच शहरों में मनेगा पुतुल उत्सव

देश के पांच बड़े शहरों हैदराबाद (तेलंगाना), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), अंगुल (ओडिशा), अगरतला (त्रिपुरा) और दिल्ली में पुतल उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। हैदराबाद और वाराणसी में यह उत्सव 21 से 23 मार्च यानी तीन दिनों तक चलेगा। वहीं अंगुल में यह उत्सव 21 और 22 मार्च को आयोजित किया जाएगा। दिल्ली और अगरतला में एक दिवसीय यानी 21 मार्च को पुतुल उत्सव का आयोजन होगा।

कठपुतली कला का रोचक है इतिहास

कठपुतली के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है। साथ ही सिंहासन बत्तीसी नामक कथा में भी 32 पुतलियों का उल्लेख है। पुतली कला की प्राचीनता के सम्बंध में तमिल ग्रंथ ‘शिल्पादिकारम्’ से भी जानकारी मिलती है।

पुतली कला कई कलाओं जैसे लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि का मिश्रण है। अब कठपुतली का उपयोग मात्र मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि शिक्षा कार्यक्रमों, रिसर्च कार्यक्रमों, विज्ञापनों आदि अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है। साथ ही साथ यह बच्चों के व्यक्तित्व के बहुमुखी विकास में सहायक होता है।

Yuva Media

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