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किसान संगठनों में आंदोलन खत्म करने को लेकर मतभेद! बनेगी सहमति या पड़ेगी फूट? 1 दिसंबर को होगा फैसला

किसान आंदोलन का संचालन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) में आंदोलन को समाप्त करने को लेकर अलग अलग राय रखने वाले दो ग्रुप बन ग‌ए हैं. सूत्रों के मुताबिक पंजाब के कुछ किसान संगठन जोकि बड़ी तादाद में हैं वो कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब आंदोलन खत्म कर अपने घरों की ओर लौटना चाहते हैं. किसानों का दूसरा समूह जिसमें विशेषकर राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के नेतृत्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान MSP खरीद गारंटी पर क़ानून बनाने के लिए केंद्र सरकार से बिना ठोस आश्वासन के आंदोलन खत्म करने के पक्ष में नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद सोमवार को संसद के शीत कालीन सत्र के पहले दिन आंदोलन खत्म करने के पक्षधर पंजाब की तकरीबन 32 जत्थेबंदियों ने आपातकालीन बैठक बुलाई और आंदोलन ख़त्म करने पर रायशुमारी की. सोमवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका एलान किया जा सकता था लेकिन संयुक्त मोर्चा इसके लिए राजी नहीं हुआ और किसान संगठनों के बीच फूट ना दिखे इसके लिए फैसले को 1 दिसंबर तक के लिए टाल दिया गया. राकेश टिकैत भी सोमवार शाम को सिंघु बार्डर पहुंचे और संयुक्त किसान मोर्चा को इस तरह से बिना MSP की गारंटी, मुकदमों की वापसी, लखीमपुर-खीरी हिंसा मामला और जान गंवाने वाले किसानों के लिए मुआवजे के लिए ठोस आश्वासन के आंदोलन खत्म ना करने की बात रखी.

अब आगे क्या हो सकता है?

हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने 4 दिसंबर को बैठक कर आगे की रणनीति बनाने का ऐलान किया था, लेकिन कृषि कानूनों की वापसी की वजह से किसान जत्थेबंदियों को लंबे समय तक बॉर्डर पर रोके रखना एक बड़ी चुनौती होगी, मतभेद खुलकर सामने आ सकते हैं. इसको देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने 4 दिसंबर से पहले 1 दिसंबर को आपात बैठक बुलाई है, इस बैठक में वो सभी 42 के करीब किसान संगठनों के नेता होंगे जो विज्ञान भवन में केंद्र सरकार से बातचीत में शामिल थे. इस बैठक का मकसद संयुक्त किसान मोर्चा के सभी नेताओं में किसान आंदोलन को खत्म करने के सर्वमान्य तरीके पर सहमति बनाने की कोशिश होगी.

क्यों हो रहा है मतभेद?

कृषि कानूनों का सबसे पहले विरोध पंजाब के किसानों ने ही किया था, उन्हीं के आह्वान पर पंजाब के साथ साथ हरियाणा के किसानों ने दिल्ली कूच किया था. जिसमें बाद में पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के किसान भी शामिल हो गए. आंदोलन धीरे धीरे देश के क‌ई राज्यों में फैला, आंकड़े बताते हैं कि देश में MSP पर सबसे ज़्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा में ही होती है, इसलिए उनकी MSP को लेकर प्रमुख मांग नहीं थी. पंजाब के किसानों की प्राथमिकता तीन कृषि कानूनों की वापसी और पराली जलाने पर दंडनीय कार्रवाई ना करना ही था, केन्द्र सरकार दोनों ही मांगों को पूरा कर चुकी है.

1 दिसंबर किसान आंदोलन के भविष्य के लिए अहम दिन होगा, सूत्रों के मुताबिक अगर सर्वसम्मति बनी तो उसी दिन किसान आंदोलन की आगे की रणनीति या समाप्ति को लेकर घोषणा की जा सकती है और अगर सर्वसम्मति नहीं बनती है तो किसान संगठनों की फूट खुलकर सामने आएगी और संतुष्ट किसान आंदोलन खत्म कर बॉर्डर छोड़कर अपने घरों को लौट सकते हैं.

Yuva Media

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